न जाने क्या करता रहा कसूर हूँ मैं?
वक्त के हाथों ही बनता मजबूर हूँ मैं,
खूब प्रताड़ना सहने में तो मशहूर हूँ मैं।
हाँ! शायद इसीलिए तो मजदूर हूँ मैं?
भले ही रहा हूँ मैं सदियों से उपेक्षित,
निरक्षर ही हूँ,हाँ!नहीं ही हूँ मैं शिक्षित,
लेकिन हालात से स्वयं हुआ हूँ प्रशिक्षित,
सदैव हुनर के बूते करता रहा गुरूर हूँ मैं,
ना ही कभी टूटा हूँ,न कभी भी टूटूँगा,
वक्त से न ही कभी झुका हूँ,न झुकूंगा,
अभी हूनर और साहस से भरपूर हूँ मैं,
हाँ! शायद इसीलिए तो मजदूर हूँ मैं!!
रचना-जयदेव मिश्र